बंगाल का विभाजन कब हुआ था ? Bengal Vibhajan Kab hua tha?

 दोस्तों आज का यह लेख बंगाल विभाजन के बारे में है। इस लेख के माध्यम से मैं आपको बताऊंगा कि बंगाल का विभाजन कब हुआ था ? बंगाल विभाजन क्यों हुआ। ? बंगाल विभाजन के बारे में अच्छे से जानने के लिए इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें, तथा अपने दोस्तों को भी शेयर करें। 


बंगाल विभाजन परिचय (Partition Of Bengal in hindi)

बंगाल के विभाजन की घोषणा तत्कालीन वायसराय कर्जन के दौरान 1905 ईस्वी में 20 जुलाई को किया गया। बंगाल के विभाजन का प्रमुख उद्देश्य एक मुस्लिम बाहुल्य प्रांत का सृजन करना था। 


बंगाल का यह विभाजन 16 अक्टूबर 1905 ई से लागू हो गया। इतिहास में हम इसे बंगभंग के नाम से भी जानते हैं। यह बंगाल का विभाजन अंग्रेजों के द्वारा लाई गई फूट डालो शासन करो कि नीति का ही एक अंग था। इसलिए इसका विरोध भी होना था।  


इसका विरोध 1905 ईस्वी में ही बंगभंग आंदोलन के नाम से चालू हो गया। इस बंगाल विभाजन के कारण उच्च स्तरीय राजनीतिक अशांति उत्पन्न हो गई। जिसके कारण 1911 ईस्वी में दोनों भागों के भारतीय जनता के दबाव के कारण विभाजित हुए बंगाल के दोनों पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से फिर से एक हो गए। 

बंगाल विभाजन की पृष्टभूमि 

बंगाल के विभाजन का सबसे पहला विचार 1903 ईस्वी में आया। कुछ प्रस्ताव पहले भी रखे गए थे जैसे चटगांव, ढाका और मैंमनसिंह के जिलों को बंगाल से अलग करके असम प्रांत में मिलाना। सन 1903 में हुआ कांग्रेस का अधिवेशन जो की 19 वां अधिवेशन था, वह भी मद्रास में ही हुआ था। इसी समय अधिवेशन के सभापति श्री लालमोहन घोष ने सरकार की प्रतिक्रियावादी नीति की आलोचना की और एक अखिल भारतीय मंच पर बंगभंग की भी सूचना दी। उनके द्वारा कहा गया कि इस प्रकार का एक सडयंत्र चल रहा है। 


सरकार के द्वारा आधिकारिक रूप से 1904 ई की शुरुआत में ही जनवरी के महीने में ही इस विचार को प्रकाशित किया। तत्पश्चात फरवरी में ही लॉर्ड कर्जन के द्वारा बंगाल के पूर्वी जिलों में विभाजन के लिए जनता की राय के लिए आधिकारिक तौर से दौरे किए गए। उन्होंने उसे समय के कुछ विशेष व्यक्तियों के द्वारा चर्चाएं की और ढाका चटगांव तथा मैमनसिंह में भाषण दिया और सरकार के विचारों को विभाजन के लिए प्रस्तुत किया। हेनरी जॉन कॉटन जो की 1896 से 1902 ई के बीच असम के चीफ कमिश्नर के पद पर थे कर्जन के इस विचार का विरोध भी किया। 


कांग्रेस के अगले अधिवेशन में वे सभापति पद पर थे। और सभापति पद से बोलते हुए उन्होंने कहा कि "यदि यह बहाना है कि इतने बड़े प्रांत को एक राज्यपाल नहीं संभाल सकता तो या तो बम्बई और मद्रास की तरह बंगाल का भी शासनसूत्र सपरिषद राज्यपाल के ही सुपुर्द हो या तो बांग्ला भाषियों को अलग करके एक प्रान्त बनाया जाए।" उस समय बंगाल में बिहार और उड़ीसा भी शामिल थे। 


पर ब्रिटिश सरकार तो अपने पर ही बनी रही। वह किसी की भी बात नहीं सुनी न तो कांग्रेस की और ना ही जनता की। उस समय ब्रिटिश अधिकारियों ने तो लोगों को बस यही समझाने में व्यस्त रहे, कि यह बंगाल विभाजन आपके लिए लाभदायक ही साबित होगा। कर्जन स्वयं पूर्वी बंगाल में भी गया पर कुछ ही, बहुत कम मुसलमान के अतिरिक्त किसी ने भी इस बंगभंग के प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया। ढाका के तत्कालीन नवाब ने भी प्रथम आवेश में इसका विरोध ही किया था। 

बंगाल का विभाजन ( Partition of Bengal )

बंगाल का विभाजन अक्टूबर की 16 तारीख को 1905 ईस्वी में तत्कालीन वायसराय लॉर्ड कर्जन के द्वारा किया गया। बंगाल तो लगभग फ्रांस जितना बड़ा था पर उसकी आबादी जो थी वह फ्रांस से बहुत ज्यादा थी। इसलिए विभाजन को प्रशासकीय कार्यों के लिए प्रोत्साहित किया गया। 


ऐसा मानना था कि विभाजन के फलस्वरुप पूर्वी क्षेत्र का विकास अच्छे से किया जा सकता था। वहां पर शासन व्यवस्था अच्छी की जा सकती थी। विभाजन के बाद वहां पर स्कूल तथा रोजगार दोनों ही अच्छे से व्यवस्थित किया जा सकता था। 


विभाजन के केवल यही उद्देश्य नहीं थे इसके कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य भी थे। बंगाली हिंदू जो थे वह शासन में अधिक से अधिक भागीदारी के लिए राजनीतिक आंदोलन में सबसे आगे रहते थे। लेकिन अब पूर्व में मुसलमानों का वर्चस्व बढ़ रहा था जिससे उनकी स्थिति अब पहले से कमजोर हो रही थी। 


विभाजन का विरोध तो हिंदू और मुस्लिम दोनों ने ही किया था। विभाजन के बाद विरोध जो था वह राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया। जिसमें हिंसक और अहिंसक दोनों प्रकार का विरोध प्रदर्शन हुआ यहां तक की पश्चिम बंगाल के नए प्रांत के राज्यपाल को जान से मारने की कोशिश भी की गई। 


लोगों के द्वारा प्रबल विरोध के बावजूद भी 19 जुलाई 1905 को बंगाल विभाजन के प्रस्ताव पर भारत सचिव का थप्पा लग गया। ढाका राजशाही और चटगांव कमिश्नरियों को आसाम के साथ मिलाकर एक प्रांत बना दिया गया। जिसका नाम दिया गया पूर्ववंग और आसाम । 


इस अवसर के फलस्वरूप हिंदुओं और मुसलमान को लड़ाने का प्रयास भी किया गया, यह कहा गया कि इस विभाजन से मुसलमान को फायदा होगा, क्योंकि पूर्ववंग और आसाम में उनका बहुमत रहेगा। ढाका के नवाब ने भी इसका विरोध शुरू में तो किया था लेकिन एक बार वंगभग होने के बाद वह इसके पक्ष में हो गए। 


सर जोजेफ बैमफील्ड फुलर जिनको पूर्ववंग और आसाम का नया लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाया गया । किंवदंती है कि इनके द्वारा कई जगहों पर खुले तौर पर कहा गया था कि हिंदू और मुस्लिम इनकी दो बीवियां है, और मुसलमान तो इनकी चहेती हैं। इस कथन के आशय को स्पष्ट समझा जा सकता था। 


बंगभंग का उद्देश्य प्रशासन को सुदृढ़ करना नहीं बल्कि कुछ और ही था। इसका दो प्रमुख उद्देश्य था पहला हिंदू और मुसलमान को आपस में लड़ाना और दूसरा नवजागृत बंगाल को चोट पहुंचाना। अगर देखा जाए तो यही से पाकिस्तान का बीज प्रस्फुटित हुआ। 

बंगभंग की समाप्ति/ बंगाल विभाजन का अंत/ बंगाल का एकीकरण

12 दिसंबर 1911 ई को दिल्ली में एक दरबार लगा, जिसमें सम्राट पंचम जॉर्ज साम्राज्ञी मेरी तथा भारत सचिव लॉर्ड क्रू शामिल हुए। इस दरबार में एक राजकीय घोषणा हुई की पश्चिम और पूर्वी बंग के बांग्ला भाषी इलाकों को एक प्रांत में शामिल करने का आदेश दिया गया। राजधानी को कलकत्ते से दिल्ली कर दिया गया। मुस्लिम लीग का वार्षिक अधिवेशन जो 1912 में हुआ उसे नवाब सलीमुल्लाह खान के सभापतित्व में ढाका में ही कराया गया। इसमें नवाब ने बंग भंग का विरोध प्रस्तुत किया। बंगाल के एकीकरण की घोषणा 1911 में ही हो गई थी और इसका पूरी तरीके से एकीकरण 1912 ईस्वी में हुआ। 

बंगाल विभाजन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर 

Q. बंगाल का विभाजन कब और क्यों किया गया था?

एक मुस्लिम बहुलता वाले प्रांत का निर्माण करने के लिए उद्देश्य से ही बंगाल का विभाजन हुआ। जो 16 अक्टूबर 1905 ई से प्रभावी हुआ। 

Q. बंगाल का दूसरा विभाजन कब हुआ था?

बंगाल का दूसरी बार विभाजन 1947 ईस्वी में हुआ। जब पूरे भारत देश का विभाजन हुआ। पूरा देश भारत और पाकिस्तान दो देशों में बट गया। 

Q. बंगाल विभाजन के समय बंगाल का गवर्नर जनरल कौन था?

बंगाल के विभाजन के समय बंगाल का गवर्नर जनरल सर एंड्रूज फ्रेजर था। 

Source:- Wikipedia - बंगाल का विभाजन 1905 ई

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