चिपको आंदोलन क्या है चिपको आंदोलन कब और किसके द्वारा शुरू किया गया ?

 आज इस लेख के माध्यम से मैं आपको चिपको आंदोलन के बारे में बताने वाला हूं। आज आप जानेंगे कि चिपको आंदोलन क्या है, चिपको आंदोलन कब और कहां पर शुरू हुआ और यह आंदोलन शुरू करने में किसकी महत्वपूर्ण भूमिका थी।  यह आंदोलन कैसा था। चिपको आंदोलन की प्रमुख घटनाओं को हम आज विस्तार से जानेंगे।

 

चिपको आंदोलन क्या है ? 

एक स्वच्छ और निरोगित पर्यावरण हम सभी के लिए जरूरी है। इसलिए हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। पर्यावरण संरक्षण की बात करें तो उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र जो 80 के दशक में पर्यावरण संरक्षण का गवाह बना। यहां पर पर्यावरण संरक्षण के लिए एक आंदोलन चलाया गया जिसे चिपको आंदोलन नाम दिया गया। 


चिपको आंदोलन की नींव 1927 में आये 'वन अधिनियम 1927' से ही पड़ गयी थी। यह अधिनियम कई तरीकों से आदिवासियों और जंगल में रहने वाले लोगो के हितों के खिलाफ था। अधिनियम के इन प्रावधानों के खिलाफ लोगों का विरोध 1930 से ही शुरू हो गया था। परिणामतः 1970 में यही एक बड़े आंदोलन के रूप में सबके सामने आया जिसे चिपको आंदोलन कहा गया। 


1961 में सरला बेन ने एक अभियान चलाया जिसके तहत उन्होंने लोगों को जागरूक करना शुरू किया। 1968 आते आते बहुत बड़ी संख्या में आदिवासी पुरुष और महिलाएं इस पर्यावरण संरक्षण के कार्य के मुहिम में जुट गई। इसी तरह से धीरे धीरे एक बड़े आंदोलन की शुरुआत हुई , जिसे चिपको आंदोलन कहा गया। 

चिपको आंदोलन कब शुरू हुआ ?

यह घटना जोशीमठ के रैणी गाँव की है जहाँ पर 1974 में वन विभाग ने लगभग 680 हेक्टेयर जंगल को ऋषिकेश के एक ठेकेदार को नीलामी में दे दिया। जिसके बाद जनवरी 1974 में इस गाँव के 2459 पेड़ों को चिन्हित किया गया जिन्हें काटना था। अब मार्च की 23 तारीख को रैणी गाँव पेड़ों को काटने से रोकने के लिए गोपेश्वर में एक विरोध रैली का आयोजन किया गया। जिसमे महिलाओं का नेतृत्व गौरा देवी ने किया। 


सड़क निर्माण के दौरान हुए नुकसान का मुआवजा देने की तिथि प्रशासन ने 26 मार्च तय की। जिसके लिए सब को चमोली आना था। वन विभाग ने इसी बात का फायदा उठाकर एक चाल के साथ जंगल काटने के लिए ठेकेदारों को कहा, क्योंकि 26 मार्च को गाँव के सभी मर्द चमोली गए रहेंगे। बचे सामाजिक कार्यकर्ता उन्हें बात करने के बहाने गोपेश्वर बुला लिया जाएगा। तो तुम लोग चुपचाप मजदुरों को लेकर रैणी चले जाओ और पेड़ों को काट डालो। 


इस वाकिया की एक लड़की द्वारा देख लिया गया । फिर वह लड़की इस घटना के बारे में गौरा देवी को आकार बताया। अब गौरा देवी पर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी आ गयी थी। उन्हें पेड़ो को कटने से बचाना था। गौरा देवी ने गांव की 21 औरतों साथ में कुछ बच्चो को लेकर जंगल में चल दी। ठेकेदार तथा मजदूर सभी उनको धमकाने लगें। लेकिन वे इससे बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं। वे गांव की महिलाओं के साथ गोला बनाकर पेड़ों से चिपक गयी। 


ठेकेदारों को इसका बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। ऐसा करने के बाद सैकड़ों महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर पेड़ों को कटने से बचाया। ठेकेदार कुछ भी नही कर सके और उन्हें खाली हाथ लौटना पड़ा। इस घटना का आस पास के अन्य इलाकों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा। जिसके परिणाम स्वरूप नैनीताल और अल्मोड़ा में चल रही जंगल की नीलामी को रोका गया। 


टिहरी में यह आंदोलन सुदरलाल बहुगुणा के द्वारा शुरू किया गया। इन्होंने 1981 से 1983 तक लगभग 5000 km की ट्रांस हिमालय की पदयात्रा गांव गांव जाकर लोगों को जागरूक करने में की। कुछ जगहों पर जंगलों को काटने से रोकने के लिए आमरण अनशन पर भी बैठे। अन्य इलाकों में भी चिपको के आंदोलन होते रहे। जिसके परिणाम स्वरूप सरकार ने एक समिति बनाई  जिसके तहत जंगलों को काटने पर 20 साल के लिए पाबंदी लगा दी गई। 

चिपको आंदोलन का घोषवाक्य 

"क्या है जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।

मिट्टी, पानी और बयार , जिंदा रहने के आधार।।"


सन 1987 में यह आंदोलन सम्यक जीविका पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 

चिपको आंदोलन से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उनके उत्तर

प्रश्न(1). चिपको आंदोलन कब और कहां हुआ था?

उत्तर:- चिपको आंदोलन सबसे पहले 1973 में उत्तराखंड के चमोली नमक जिले में हुई। उसे समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का ही हिस्सा था।

प्रश्न(2). चिपको आंदोलन की शुरुआत कब और किसने की?

चिपको आंदोलन उत्तराखंड में चमोली जिले में रेनी नामक गांव में सबसे पहले 1973 ईस्वी में हुआ। यहां आंदोलन चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदरलाल बहुगुणा के द्वारा शुरू किया गया।

प्रश्न(3). चिपको आंदोलन क्या है विस्तार से समझाइए?

चिपको आंदोलन सबसे पहले उत्तराखंड में पेड़ों को बचाने के लिए किया गया एक आंदोलन है। यह आंदोलन एक अहिंसक आंदोलन था जिसे ग्रामीणों के द्वारा किया गया। इस आंदोलन में वहां के ग्रामीणों ने पेड़ों से चिपक कर पेड़ों को काटने से बचाया। वन विभाग ने वहां के पेड़ों की नीलामी करके ठेकेदारों को वह वन बेच दिए थे। जिन्हें काटने से बचाने के लिए ग्रामीणों ने यह आंदोलन किया। 

प्रश्न(4). चिपको आंदोलन का नारा क्या है?

चिपको आंदोलन का नारा है 'पारिस्थितिकी स्थाई अर्थव्यवस्था '। जिसे सुंदरलाल बहुगुणा ने दिया था। 

प्रश्न(5). चिपको आंदोलन कब समाप्त हुआ?

1980 में जब सरकार द्वारा हिमालय क्षेत्र में पेड़ों की कटाई पर 15 सालों के लिए रोक लगा दी गई तब चिपको आंदोलन की भी समाप्ति हो गई। 


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