उड़ीसा के पुरी जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

 दोस्तों आज के इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे जगन्नाथ मंदिर के बारे में। आज हम जगन्नाथ मंदिर के इतिहास को विस्तार से जानेंगे। जानेंगे कि कैसे भारत का यह प्रमुख मंदिर इतिहास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 


पुरी जगन्नाथ मंदिर की जानकारी

पुरी के इस जगन्नाथ मंदिर को हिंदुओं के चारों धामों में से एक माना जाता है। यह मंदिर वैष्णो संप्रदाय का है। जो भगवान विष्णु के ही अवतार कृष्णा को समर्पित है। पुराणों में इस मंदिर को धरती के बैकुंठ के नाम से भी पुकारा जाता है। इस मंदिर का सबसे प्रसिद्ध रथ यात्रा उत्सव है जो प्रतिवर्ष मनाया जाता है। 


इस यात्रा में मंदिर के तीनों मुख्य देवता भगवान जगन्नाथ दूसरे उनके बड़े भ्राता बलभद्र और तीसरी उनकी भगिनी सुभद्रा के साथ रथ यात्रा निकाली जाती है। यह तीनों देवता भव्य और सुसज्जित रथ में बैठकर नगर की यात्रा पर जाते हैं। लंबे समय से या उत्सव बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। 

पुरी जगन्नाथ मंदिर का इतिहास

गंग वंश के हाल ही में मिले ताम्रपत्रों से यह ज्ञात होता है कि वर्तमान मंदिर के निर्माण कार्य को कलिंग के राजा अनंतबर्मन चोडगंग के द्वारा चालू करवाया गया। 1197 में उड़ीसा के शासक अनंग भीमदेव मैं इस मंदिर को वर्तमान का स्वरूप प्रदान किया। मंदिर में भगवान जगन्नाथ की अर्चना 1558 ई तक होती रही। 


इसी वर्ष काला पहाड़ नामक अफगान जनरल ने उड़ीसा पर हमला कर दिया। परिणाम स्वरुप कई मूर्तियां और मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया और जो भगवान जगन्नाथ की अर्चना होती थी उसे भी बंद कर दिया गया। तथा विग्रह को गुप्त रूप से चिल्का झील में एक द्वीप में रखा गया। कुछ समय बाद रामचंद्र देव ने खुर्दा में स्वतंत्र राज्य स्थापित किया और मंदिर की मूर्तियों की पुनर्स्थापना की। 


बहुत से इतिहासकार ऐसा भी मानते हैं कि इस मंदिर के स्थान पर जहां पर यह मंदिर है एक बौद्ध स्तूप हुआ करता था। जिसके अंदर बुद्ध का एक दांत रखा हुआ था। बाद में उसे श्रीलंका भेज दिया गया। इसी समय में बौद्ध धर्म को वैष्णव संप्रदाय ने आत्मसात कर दिया था। और तभी से जगन्नाथ अर्चना प्रसिद्ध हुई। यह घटना दसवीं शताब्दी की बताई जाती है जब उड़ीसा में सोमवंश का शासन चल रहा था। 

पुरी जगन्नाथ मंदिर के रथ यात्रा का इतिहास

पुराणो के अनुसार जब एक बार सुभद्रा ने नगर देखने की चाहत भगवान श्री कृष्ण के समझ रखी। तब श्री कृष्ण ने उन्हें रथ पर बिठाकर पूरे नगर का भ्रमण कराया और उन्हें पूरा नगर दिखाए। किसी घटना के कारण प्रत्येक वर्ष तीनों देवताओं को रथ पर बैठकर नगर में घुमाया जाता है। 

पुरी जगन्नाथ मंदिर के कुछ आश्चर्यजनक तथ्य

  • आप किसी भी जगह से श्री जगन्नाथ मंदिर के ऊपर लगे हुए चक्र को देखते हैं तो यह आपको अपने सामने ही दिखाई देगा

  • सामान्यतः दिनों में हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत होता है, लेकिन पूरी में इसकी विपरीत घटना होती है। 

  • मंदिर की सीट पर लगा हुआ ध्वज सदैव हवा की विपरीत दिशा में लहरता है। 

  • पक्षी या किसी विमान को आप मंदिर के ऊपर से उड़ते हुए नहीं देख सकते।

  • इसके मुख्य गुंबद की छाया आप नहीं देख सकते, यह अदृश्य होती है।

  • मंदिर में भोजन की कमी कभी नहीं होती और ना ही कभी भजन व्यर्थ जाता है लाखों लोगों को एक दिन में भोजन कराया जाता है।

  • मंदिर रसोई में प्रसाद को पकाने के लिए 7 बर्तन का प्रयोग किया जाता है। जिन्हें एक के ऊपर एक रखा जाता है और लकड़ी के आग से पकाया जाता  है और आश्चर्य वाली बात यह है की सबसे ऊपर वाला बर्तन का प्रसाद सबसे पहले पकता है।

  • मंदिर परिसर के सिंहद्वारा में जैसे ही आप अपना पहला कदम रखेंगे आपको बाहर समुद्र की कोई भी ध्वनि नहीं सुनाई देगी। ऐसे ही आप मंदिर के बाहर एक भी कदम रखेंगे आपको वह ध्वनि वापस सुनाई देने लगेगी।

  • 45 मंजिला ऊपरी शिखर पर लगे ध्वज को एक पुजारी प्रतिदिन बदलता है। इसकी मान्यता यह है कि अगर किसी भी दिन वह ध्वज नहीं बदल गया तो अगले 18 वर्षों तक मंदिर को बंद कर दिया जाएगा। 

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