राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण के योगदान का मूल्यांकन कीजिए

 राजनीति विज्ञान ( Political Science ) वह विज्ञान है जिसमे मानव संबंधित राज्य और सरकार दोनों संस्थाओं का अध्ययन करता है, क्योंकि मानव एक सामाजिक और राजनीतिक प्राणी है। 

 

राजनीति विज्ञान के अंतर्गत राजनीतिक चिंतन, राजनीतिक सिद्धांत, राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक विचारधारा, तुलनात्मक राजनीति आदि क्षेत्र आते हैं। 

राजनीति विज्ञान का परंपरागत दृष्टिकोण 

6ठी ईसा पूर्व से लेकर 20वीं शताब्दी अर्थात द्वितीय विश्व युद्ध के पहले तक जिस राजनीतिक दृष्टिकोण का प्रचलन सर्वाधिक था उसे अध्ययन सुविधा की दृष्टि से परंपरागत राजनीतिक दृष्टिकोण कहा जाता था। इसे आदर्शवादी दृष्टिकोण भी कहा जाता है। 


राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण के निर्माण और विकास में कई राजनीतिक विचारकों का योगदान रहा है। जिनमे प्लेटो, अरस्तू, सिसरो, सेंट आगस्टीन, लॉक, रुसो, मोन्टेस्क्यु, हीगल आदि शामिल हैं। आधुनिक युग में भी बहुत से ऐसे विद्वान हैं जो राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण के समथर्क माने जाते हैं। जिनमे लियो स्ट्रॉस, एरिक वोगलीन, हन्ना आरेन्ट आदि विद्वान शामिल हैं। 


राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण ने राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिए मुख्य रूप से दार्शनिक, नैतिक, तार्किक, ऐतिहासिक और विधिक पद्धतियों को अपनाया। 19 वीं शताब्दी से इसने कई पद्धतियों जैसे विधिक, संवैधानिक, संस्थागत, विवर्णात्मक एवं तुलनात्मक पद्धतियों पर विशेष बल दिया। 20 वीं शताब्दी के प्रारंभ से ही राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण ने राजनीतिक सिद्धान्त के निर्माण के लिए एक नई दृष्टि अपनायी और यह अतीत की तुलना में अधिक यथार्थवादी थी। 

अर्थ और परिभाषा 

राजनीति का पर्यायवाची अंग्रेजी शब्द पॉलिटिक्स( politics) यूनानी भाषा के पॉलिस शब्द , जिसका अर्थ नगर एवं राज्य होता है से बना है। प्राचीन यूनान में नगर एक स्वतंत्र राज्य के रूप में संगठित था। 


परंपरागत राजनीति विज्ञान के विद्वानों ने राजनीति विज्ञान की अलग अलग परिभाषाएं दी हैं, जिन्हें नीचे विस्तारपूर्वक बताया गया है। 

1. राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन 

अनेक राजनीतिशास्त्रियो का ऐसा मानना है कि प्राचीन काल से ही राजनीति विज्ञान राज्य का अध्ययन विषय है।

कई विद्वानों का ऐसा मानना है कि प्राचीन काल से आधुनिक काल तक राजनीति विज्ञान का केंद्रीय तत्व राज्य ही है। इसलिए राजनीति विज्ञान में राज्य का अध्ययन प्रमुख रूप से किया जाता है। 


प्रमुख विद्वान ब्लुनसली  के अनुसार "राजनीतिशास्त्र वह विज्ञान है जिसका संबंध राज्य से है जो यह समझने का प्रयत्न करता है कि राज्य का आधरभूत तत्व क्या है उसका स्वरूप क्या है तथा उनकी किन किन विविध रूपों में अभिव्यक्ति होती है और उनका विकास कैसे हुआ।"


डॉ गार्नर के अनुसार "राजनीति विज्ञान का प्रारंभ और अंत राज्य के ही साथ होता है।"

डॉ जकारिया के अनुसार "राजनीतिशास्त्र व्यवस्थित रूप में उन आधारभूत सिद्धान्तों का निरूपण करता है जिसके अनुसार समष्टि रूप में राज्य का संगठन होता है तथा प्रभुसत्ता का प्रयोग किया जाता है।"


उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि राजनीति विज्ञान का केंद्रीय तत्व राज्य ही है। 

2. राजनीति विज्ञान सरकार का अध्ययन

बहुत से ऐसे राजनीतिशास्त्रियो का मानना है कि राजनीति विज्ञान में राज्य नही सरकार का अध्ययन किया जाना चाहिए। उनका मानना है कि राज्य मनुष्यों का केवल संगठन विशेष है जबकि राज्य का संचालन सरकार के द्वारा ही होता है। विभिन्न विद्वानों का मानना है कि राज्य एक अमूर्त संरचना है जबकि सरकार मूर्त और प्रत्यक्ष। सरकार ही संप्रभुता का प्रयोग करती है। अतः राजनीति विज्ञान में सरकार का ही अध्ययन होना आवश्यक है। 


सीले के अनुसार "राजनीति विज्ञान शाशन के तत्वों का उसी प्रकार अनुसंधान करती है जैसे जीवविज्ञान जीवन का, संपत्ति शास्त्र संपत्ति का, अंकगणित अंको का तथा रेखागणित स्थान एवं लंबाई चौड़ाई का करता है।"


लिकॉक के अनुसार "राजनीति विज्ञान सरकार से संबंधित शास्त्र है।"

3. राजनीति विज्ञान राज्य और सरकार दोनों का अध्ययन

राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण के कुछ विद्वानों का मानना है कि केवल राज्य या फिर केवल सरकार की दृष्टि से दी गई परिभाषाएं पूरी तरह से सत्य नही है। क्योंकी राज्य और सरकार का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। इसलिए किसी एक का अध्ययन करते समय दूसरे को छोड़ नही सकते। अतः राजनीति विज्ञान के अंतर्गत इन दोनों का अध्ययन आवश्यक है। 


पॉल जैनेट के अनुसार "राजनीति विज्ञान सामाजिक विज्ञानों का वह अंग है जिसमे राज्य के आधार तथा सरकार के सिद्धांतों पर विचार किया जाता है।"


डिमॉक के अनुसार "राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य तथा उसके साधन सरकार से है।"


गिलक्राइस्ट के अनुसार "राजनीति विज्ञान राज्य व सरकार की सामान्य समस्याओं का अध्ययन करता है।"

राजनीति विज्ञान का क्षेत्र

जिस प्रकार से राजनीति विज्ञान के परंपरागत परिभाषा में विभिन्न विद्वान का अलग-अलग विचार है। इसी प्रकार राजनीतिक विज्ञान के क्षेत्र में भी अलग-अलग नेताओं ने अपने अलग-अलग मत प्रस्तुत किये हैं। जैसे-

ब्लुनसली के अनुसार "राजनीति विज्ञान का संबंध राज्य के आधारों से है वह उसकी आवश्यक प्रकृति, उसके विविध रूपों , उसकी अभिव्यक्ति तथा विकास का अध्ययन करता है।"


डॉ गार्नर के शब्दों में  "इसकी मौलिक समस्याओं में साधारणतया प्रथम, राज्य की उत्पत्ति और उसकी प्रकृति का अनुसंधान , द्वितीय राजनीतिक संस्थाओं की प्रगति उसके इतिहास तथा उनके स्वरूपों का अध्ययन, तथा तृतीय जहां तक संभव हो इसके आधार पर राजनीतिक और विकास के नियमों का निर्धारण करना सम्मिलित है।"


उपरोक्त परिभाषाओं से तीन विचारधाराए हमारे सामने प्रस्तुत होती हैं- 

  • प्रथम राज्य को राजनीति विज्ञान का प्रमुख विषय मानती है।

  • दूसरा सरकार पर ही राजनीति विज्ञान केंद्रित है।

  • और तीसरा राज्य और सरकार दोनों ही राजनीति विज्ञान के अभिन्न अंग हैं। 


परंपरागत राजनीतिक विज्ञान का क्षेत्र निर्धारित करने के लिए सन 1948 में संयुक्त राज्य संघ की युनेस्को द्वारा प्रमुख राजनीति शास्त्रियों का एक सम्मेलन आयोजित किया गया। जिसमें निम्नलिखित अध्ययन विषयों को सम्मिलित करने का निर्णय सामने आया। 

1.राजनीतिक सिद्धांत

2.राजनीतिक संस्थाएं

3.राजनीतिक दल समूह एवं लोकमत

4. अंतरराष्ट्रीय संबंध

परम्परागत राजनीति विज्ञान की प्रमुख विशेषताएं 

यह दर्शन और कल्पना पर आधारित परंपरागत राजनीतिक विज्ञान है। दर्शन से लगभग सभी परंपरावादी राजनीतिक विचारक प्रभावित हुए हैं। इनकी चिंतन प्रणाली निगमनात्मक चिंतन प्रणाली है। राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण में प्लाटों का विशेष महत्व है। आधुनिक युग में परंपरागत राजनीतिक दृष्टिकोण के समर्थक काफी हो चुके हैं। रूसो,  हीगल, ग्रीन, लास्की आदि। 

इन्हें भी पढ़ें: 1. जल संभर क्या है?

                  2. इतिहास क्या है अर्थ और परिभाषा



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