नाद: संगीत की आत्मा
नाद क्या है?
नाद को संगीत में एक मधुर ध्वनि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो नियमित और स्थिर गति से उत्पन्न होती है। इसे संगीतोपयोगी ध्वनि भी कहा जाता है। संगीत की रचना में इसी प्रकार की ध्वनि का प्रयोग किया जाता है, जबकि अस्थिर और अमधुर ध्वनि को नाद नहीं माना जाता।
नाद की विशेषताएँ
नाद की पहचान उसकी तीन मुख्य विशेषताओं के आधार पर की जा सकती है:
नाद का आकार: नाद को छोटे और बड़े में विभाजित किया जा सकता है। छोटे नाद की आवाज कम दूरी तक पहुंचती है, जबकि बड़े नाद की आवाज अधिक दूरी तक सुनाई देती है। उदाहरण के लिए, धीरे से बजाया गया तानपूरा कम दूरी तक सुनाई देता है, जबकि जोर से बजाया गया तानपूरा अधिक दूर तक।
नाद की ऊँचाई-निचाई: गाते या बजाते समय हम यह अनुभव करते हैं कि जैसे-जैसे स्वर ऊपर की ओर बढ़ता है, नाद की ऊँचाई भी बढ़ती जाती है। इसका कारण प्रति सेकेण्ड होने वाली आन्दोलन-संख्या है। अधिक संख्या के साथ, नाद ऊँचा और कम संख्या के साथ, नाद नीचा होता है।
नाद की जाति और गुण: कोई भी नाद अकेला उत्पन्न नहीं होता; इसके साथ सहायक नाद भी उत्पन्न होते हैं। ये सहायक नाद एक दूसरे से भिन्न होते हैं, जिससे विभिन्न वाद्यों की पहचान करना संभव होता है। जैसे, तबले की ध्वनि अलग होती है, जिससे हम उसे पहचान सकते हैं।
श्रुति
संगीत में उपयोगी नाद की संख्या असंख्य हो सकती है, लेकिन संगीतज्ञों ने अधिकतम 22 नादों को श्रुति के रूप में मान्यता दी है। श्रुति वह है जिसे हम स्पष्ट रूप से सुन सकते हैं और समझ सकते हैं। प्रत्येक श्रुति एक विशेष नाद है, लेकिन हर नाद श्रुति नहीं होता।
निष्कर्ष
नाद संगीत की मूल ध्वनि है, जो हमें न केवल संगीत का आनंद देती है, बल्कि हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती है। चाहे वह छोटे नाद की मधुरता हो या बड़े नाद का प्रभाव, दोनों ही संगीत के अनुभव को समृद्ध करते हैं। संगीत में नाद और श्रुति के ज्ञान से हम एक गहरे और समृद्ध संगीत अनुभव का आनंद ले सकते हैं।
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