रिहला / रेहला
रिहला मोरक्को के यात्री और विद्वान इब्नबतूता के द्वारा लिखा गया है।
यह यात्रा वृतांत है जिसे अरबी भाषा में लिखा गया है। इस पुस्तक का आधिकारिक शीर्षक है “शहरों के आश्चर्य और यात्रा के चमत्कारों पर विचार करने वालों के लिए एक उत्कृष्ट कृति। ”
इस पुस्तक में इब्नबतूता ने अपने जीवन भर की यात्राओं का वर्णन तथा अन्वेषण का वर्णन किया है। इस पुस्तक में भारतीय उपमहाद्वीप की 14वीं शताब्दी के सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन का वर्णन किया गया है।
इब्नबतूता एक अरब यात्री था जो विद्वान और लेखक भी था।
इब्नबतूता का जीवन परिचय
इब्न बत्तूता के पूर्वज काजी थे, और वह बचपन से ही धार्मिक प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसे मक्का की हज यात्रा और प्रसिद्ध मुस्लिम विद्वानों से मिलने की गहरी इच्छा थी। मात्र 22 वर्ष की आयु में उसने इस आकांक्षा को पूरा करने के लिए यात्रा आरंभ की। प्रारंभ में उसने इतनी लंबी यात्राओं की संभावना नहीं सोची थी।
मक्का की तीर्थयात्रा हर मुसलमान का धर्म कर्तव्य मानी जाती थी। विभिन्न देशों से सैकड़ों मुसलमान हज के लिए आते थे, और उनकी यात्रा को सुविधाजनक बनाने के लिए उस समय कई संस्थाएँ अस्तित्व में थीं। ये संस्थाएँ यात्रियों को ठहरने, खाने-पीने, और सुरक्षा जैसी सुविधाएँ प्रदान करती थीं, जिससे उनकी यात्रा आनंददायक और सुरक्षित बनती थी। इन संस्थाओं की व्यवस्था के कारण गरीब से गरीब मुसलमान भी हज के लिए सक्षम हो पाते थे।
इब्न बत्तूता ने इन संस्थाओं की अत्यधिक सराहना की और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की। सबसे उत्कृष्ट वे संगठन थे जो बड़े यात्रा दलों के लिए मार्ग की हर सुविधा और सुरक्षा का पहले से प्रबंध करते थे। गाँवों और नगरों में स्थित ख़ानकाहें और सराएँ यात्रियों के ठहरने और भोजन की व्यवस्था करती थीं। धार्मिक नेताओं को विशेष सत्कार मिलता था, और शेख तथा काजी जैसे पदाधिकारी इन यात्रियों का आदर करते थे। यह संस्थाएँ इस्लामी भ्रातृत्व के सिद्धांत का आदर्श उदाहरण थीं।
इसके अतिरिक्त, अरब सौदागरों के हाथों में समुद्री व्यापार होने के कारण अफ्रीका और भारत के समुद्री मार्गों पर मुसलमान यात्रियों को विशेष सुविधा और सम्मान मिलता था। इन सौदागरों ने भी यात्रियों की मदद और सत्कार में योगदान दिया, जिससे लंबी यात्राएँ सुगम और सुरक्षित बन गईं।
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