कार्टन दहन कृषि: एक पर्यावरणीय समस्या और समाधान ( Carton Burning Agriculture in Hindi)

परिचय:

कार्टन दहन कृषि (Carton Burning Agriculture) या पराली जलाने की प्रथा भारत सहित कई देशों में प्रचलित है, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां गेंहू और धान जैसी फसलों की कटाई के बाद खेतों को साफ करने की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया में खेतों में बची पराली, फसल के अवशेष या कार्टन को जला दिया जाता है। यह प्रथा किसानों के लिए सस्ती और तेज़ समाधान प्रतीत होती है, लेकिन यह पर्यावरण, स्वास्थ्य और मिट्टी की उर्वरता के लिए गंभीर समस्याएं पैदा करती है।

इस लेख में हम कार्टन दहन कृषि की प्रक्रिया, इसके कारण, प्रभाव और इसके समाधान पर विस्तृत चर्चा करेंगे।


कार्टन दहन कृषि क्या है?

कार्टन दहन कृषि वह प्रक्रिया है, जिसमें फसल कटाई के बाद बचे हुए अवशेषों (जैसे धान या गेहूं की पराली) को खेतों में जला दिया जाता है। इसे पराली जलाना भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से उन क्षेत्रों में प्रचलित है, जहां आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग करके फसल की कटाई की जाती है, जिससे बड़ी मात्रा में अवशेष खेतों में रह जाते हैं।

प्रमुख क्षेत्र:

भारत में यह प्रथा पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, और राजस्थान जैसे राज्यों में अधिक देखने को मिलती है।


कार्टन दहन कृषि के कारण

1. समय की कमी:

  • खरीफ और रबी फसल के बीच समय बहुत कम होता है, जिससे किसान जल्दी खेत तैयार करने के लिए पराली जलाने का सहारा लेते हैं।

2. आर्थिक सीमाएं:

  • छोटे और मझोले किसान आधुनिक उपकरणों (जैसे Happy Seeder) का उपयोग करने में असमर्थ होते हैं, इसलिए वे सस्ते विकल्प अपनाते हैं।

3. जागरूकता की कमी:

  • किसानों को पराली जलाने के दीर्घकालिक नुकसान और वैकल्पिक विधियों के बारे में जानकारी कम होती है।

4. सरकारी नीतियों का अभाव:

  • पर्याप्त सब्सिडी और उपकरणों की उपलब्धता की कमी इस समस्या को और बढ़ाती है।

कार्टन दहन कृषि के प्रभाव

1. पर्यावरण पर प्रभाव:

  • वायु प्रदूषण: पराली जलाने से भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सूक्ष्म कण (PM 2.5) उत्सर्जित होते हैं, जो वायु गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित करते हैं।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन: यह जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है।
  • ओज़ोन परत का नुकसान: धुएं में उपस्थित गैसें ओजोन परत को नुकसान पहुंचा सकती हैं।

2. स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  • पराली जलाने से निकलने वाले धुएं के कारण सांस की बीमारियां, आंखों में जलन, और हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।
  • बच्चों और बुजुर्गों पर इसका असर अधिक होता है।

3. मिट्टी की उर्वरता पर प्रभाव:

  • जलने के कारण मिट्टी में उपस्थित लाभकारी सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं।
  • मिट्टी की संरचना और नमी प्रभावित होती है।

4. आर्थिक प्रभाव:

  • पराली जलाने के कारण सरकार को स्वास्थ्य, पर्यावरण संरक्षण और अन्य कार्यों पर अधिक खर्च करना पड़ता है।

कार्टन दहन कृषि के समाधान

1. वैकल्पिक प्रथाओं का उपयोग:

  • Happy Seeder मशीन: यह मशीन पराली को हटाए बिना ही खेतों में नई फसल बोने में मदद करती है।
  • मल्चिंग (Mulching): पराली को मिट्टी की सतह पर बिछाकर मिट्टी की नमी बनाए रखने और खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है।

2. जैविक उपयोग:

  • कम्पोस्टिंग: पराली को जैविक खाद में परिवर्तित किया जा सकता है।
  • बायोगैस उत्पादन: पराली का उपयोग बायोगैस संयंत्रों में ऊर्जा उत्पादन के लिए किया जा सकता है।

3. जागरूकता अभियान:

  • किसानों को पराली जलाने के नुकसान और वैकल्पिक विधियों के लाभ के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है।

4. सरकारी पहल:

  • किसानों को आधुनिक उपकरणों के लिए सब्सिडी प्रदान करना।
  • पराली प्रबंधन के लिए सख्त नियम लागू करना।
  • शोध और विकास को प्रोत्साहन देना।

5. निजी क्षेत्र की भागीदारी:

  • कृषि अवशेषों के उपयोग के लिए उद्योगों को प्रोत्साहित करना।
  • पराली आधारित उत्पादों (जैसे पेपर, बोर्ड) का निर्माण।

भारत में सरकार की पहल

1. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP):

  • वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए शुरू की गई एक पहल।

2. सब्सिडी योजनाएं:

  • किसानों को Happy Seeder और अन्य कृषि उपकरण खरीदने के लिए सब्सिडी।

3. अवेयरनेस प्रोग्राम:

  • किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए कई राज्य सरकारें अभियान चला रही हैं।

आधुनिक तकनीक और शोध की भूमिका

  • ड्रोन तकनीक: पराली जलाने की पहचान के लिए ड्रोन का उपयोग।
  • कृषि रोबोटिक्स: पराली को कुशलतापूर्वक प्रबंधित करने के लिए।
  • जैव-इंजीनियरिंग: पराली को जैविक ऊर्जा और अन्य उत्पादों में बदलने के लिए।

निष्कर्ष

कार्टन दहन कृषि एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या है, लेकिन इसके समाधान के लिए तकनीकी, आर्थिक और सामाजिक दृष्टिकोण अपनाए जा सकते हैं। किसानों को जागरूक करना, आधुनिक उपकरणों को सुलभ बनाना, और पराली के उपयोग के नए रास्ते ढूंढना इस समस्या को हल करने में सहायक हो सकते हैं। यह केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि समाज, उद्योग और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर काम करना होगा।

क्या आप पराली जलाने के प्रभावों को कम करने के लिए कोई अन्य उपाय सुझा सकते हैं? अपने विचार साझा करें।

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