निम्नलिखित में से किस खगोलीय पिंड की लोकेशन महाकुंभ मेले का समय तय करती है? ( mahakumbh mele ka aayojan )

महाकुंभ मेले का समय और इसका खगोलीय आधार

महाकुंभ मेला भारत का सबसे बड़ा और पवित्र धार्मिक आयोजन है, जिसे विशेष खगोलीय स्थितियों के आधार पर आयोजित किया जाता है। यह मेला हर 12 वर्ष में एक बार होता है, जब बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य तथा चंद्रमा की स्थिति धार्मिक और खगोलीय दृष्टि से अनुकूल मानी जाती है।

खगोलीय महत्व

महाकुंभ मेले का समय ज्योतिषीय गणनाओं पर आधारित होता है। भारतीय ज्योतिष में यह माना जाता है कि जब:

  1. बृहस्पति ग्रह कुंभ राशि में होता है।
  2. सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है।
  3. चंद्रमा भी उचित राशि में स्थित होता है।

इन खगोलीय स्थितियों का संयोजन धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक शुभ माना जाता है और इस समय में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।

हर 12 वर्षों का चक्र

बृहस्पति ग्रह को अपनी कक्षा में एक चक्र पूरा करने में लगभग 12 वर्षों का समय लगता है। इसलिए महाकुंभ का आयोजन हर 12 वर्षों में किया जाता है। इसके अलावा, हर 6 साल के अंतराल पर अर्धकुंभ मेला भी आयोजित होता है।

धार्मिक मान्यता

यह माना जाता है कि इन खगोलीय स्थितियों के दौरान संगम (प्रयागराज), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में स्नान करने से व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस आयोजन का संबंध समुद्र मंथन की उस कथा से भी है, जिसमें अमृत कलश से कुछ बूंदें इन स्थानों पर गिरी थीं।

निष्कर्ष

महाकुंभ मेले का समय केवल एक धार्मिक आयोजन भर नहीं है, बल्कि यह खगोलीय और ज्योतिषीय महत्व का अद्भुत उदाहरण भी है। यह मेला न केवल आस्था और परंपरा का प्रतीक है, बल्कि खगोलशास्त्र की वैज्ञानिक समझ का भी प्रमाण है।

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